इक टूटी सी ज़िन्दगी को समेटने की चाहत थी
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इक टूटी सी ज़िन्दगी को समेटने की चाहत थी,
न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेरे बैठेंगे हम।
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इक टूटी सी ज़िन्दगी को समेटने की चाहत थी,
न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेरे बैठेंगे हम।
Ik tootee see zindagee ko sametane kee chaahat thee,
Na khabar thee un tukadon ko hee bikhere baithenge ham.
Today's Shayari
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