उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था
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उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था,
दर्द था मगर वो दिल के बहुत करीब था,
जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में,
वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।
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उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था,
दर्द था मगर वो दिल के बहुत करीब था,
जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में,
वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।
Unn Galiyon Se Jab Gujre Toh Manzar Ajeeb Tha,
Dard Tha Magar Woh Dil Ke Bahut Kareeb Tha,
Jise Hum Dhoondhte The Apni Haatho Ki Lakeeron Mein,
Woh Kisi Doosare Ki Kismat Kisi Aur Ka Naseeb Tha.
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