गम-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
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गम-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई,
चले आओ इस दुनिया से जा रहा है कोई,
अज़ल से कह दो रुक जाये दो घड़ी,
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई,
वो इस नाज से बैठे हैं लाश के पास,
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई,
पलट कर न आ जायें फिर साँसें,
हसीं हाथों से मय्यत सजा रहा है कोई।
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गम-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई,
चले आओ इस दुनिया से जा रहा है कोई,
अज़ल से कह दो रुक जाये दो घड़ी,
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई,
वो इस नाज से बैठे हैं लाश के पास,
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई,
पलट कर न आ जायें फिर साँसें,
हसीं हाथों से मय्यत सजा रहा है कोई।
Gham-E-Hayaat Ka Jhagra Mita Raha Hai Koi,
Chale Aao Iss Duniya Se Ja Raha Hai Koi,
Azal Se Keh Do Ruk Jayee Do Ghari,
Suna Hai Aane Ka Wada Nibha Raha Hai Koi,
Woh Iss Naaz Se Baithe Hain Laash Ke Pass,
Jaise Ruthe Huye Ko Manaa Raha Hai Koi,
Palat Kar Na Aa Jayein Phir Saansien,
Haseen Hathon Se Mayyat Saja Raha Hai Koi.
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