वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही
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वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में शिद्दत न रही,
अपनी जिंदगी में हो गए मसरूफ वो इतना,
कि हम को याद करने की फुर्सत न रही।
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वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में शिद्दत न रही,
अपनी जिंदगी में हो गए मसरूफ वो इतना,
कि हम को याद करने की फुर्सत न रही।
Woh Silsile Woh Shauk Woh Gurbat Na Rahi,
Fir Yun Hua Ke Dard Mein Shiddat Na Rahi,
Apni Zindgi Mein Ho Gaye Masroof Woh Itna,
Ki Hum Ko Yaad Karne Ki Fursat Na Rahi.
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