कोई कब तक महज सोचे
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कोई कब तक महज सोचे,
कोई कब तक महज गाये,
इलाही क्या ये मुमकिन है,
कि कुछ ऐसा भी हो जाये,
मेरा महताब उसकी रात के,
आगोश में पिघले,
मैं उसकी नींद में जागूं,
वो मुझमें घुल के सो जाये।
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कोई कब तक महज सोचे,
कोई कब तक महज गाये,
इलाही क्या ये मुमकिन है,
कि कुछ ऐसा भी हो जाये,
मेरा महताब उसकी रात के,
आगोश में पिघले,
मैं उसकी नींद में जागूं,
वो मुझमें घुल के सो जाये।
Koyi Kab Tak Mahaj Soche,
Koyi Kab Tak Mahaj Gaaye,
Ilahi Kya Yeh Mumkin Hai Ke,
Kuch Aisa Bhi Ho Jaaye,
Mera Mehtaab Uski Raat Ke,
Aagosh Mein Pighale,
Main Uski Neend Mein Jaagu
Wo Mujhme Ghul Ke So Jaye.
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