पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं,
किन्तु धर्म तो एक ही होता है.
यदि पंथ- सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए
प्रेरणा देते हैं तो ठीक
अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना
न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति....
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पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं,
किन्तु धर्म तो एक ही होता है.
यदि पंथ- सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए
प्रेरणा देते हैं तो ठीक
अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना
न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति....
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