स्वारथ की प्रीत टूट गई अब खामोशी है,
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स्वारथ की प्रीत टूट गई अब खामोशी है,
प्रभु तेरे दरस के लिए मेरी आँखे प्यासी है,
डर क्यों लगता है जब आत्मा अविनाशी है,
दूर क्यों हुआ जब मेरा जन्मस्थान काशी है.
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स्वारथ की प्रीत टूट गई अब खामोशी है,
प्रभु तेरे दरस के लिए मेरी आँखे प्यासी है,
डर क्यों लगता है जब आत्मा अविनाशी है,
दूर क्यों हुआ जब मेरा जन्मस्थान काशी है.
Svaarath kee preet toot gaee ab khaamoshee hai,
Prabhu tere daras ke lie meree aankhe pyaasee hai,
Dar kyon lagata hai jab aatma avinaashee hai,
Door kyon hua jab mera janmasthaan kaashee hai.
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