गिरा रही थी जिंदगी मुझे बार बार अलग अलग ठोकरों से
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गिरा रही थी जिंदगी मुझे बार-बार अलग-अलग ठोकरों से,
बर्ताव कर रहा हो जैसे कोई मालिक अपने नौकरों से,
हिम्मत और हौसले को मैंने फिर भी अपनी बैसाखियाँ बनायीं
पहुँच गया सफलता की मंजिल पे
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गिरा रही थी जिंदगी मुझे बार-बार अलग-अलग ठोकरों से,
बर्ताव कर रहा हो जैसे कोई मालिक अपने नौकरों से,
हिम्मत और हौसले को मैंने फिर भी अपनी बैसाखियाँ बनायीं
पहुँच गया सफलता की मंजिल पे
Gira rahee thee jindagee mujhe baar-baar alag-alag thokaron se,
Bartaav kar raha ho jaise koee maalik apane naukaron se,
Himmat aur hausale ko mainne phir bhee apanee baisaakhiyaan banaayeen
Pahunch gaya saphalata kee manjil pe
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