कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
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कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
इसी सबब से हैं हम पर अज़ाब जितने हैं !!
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कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
इसी सबब से हैं हम पर अज़ाब जितने हैं !!
Kuchal ke phenk do aankhon mein khwaab jitane hain
Isi sabab se hain ham par ajaab jitane hain
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