मैं रेगिस्तान में भी खिला दूं फूल
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मेरे शरीर से आती है वतन की मिट्टी की खुशबु,
दुश्मन को चाटता हूं धूल,
आसमान को भी भर लूं मुठ्ठी में,
मैं रेगिस्तान में भी खिला दूं फूल !!
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मेरे शरीर से आती है वतन की मिट्टी की खुशबु,
दुश्मन को चाटता हूं धूल,
आसमान को भी भर लूं मुठ्ठी में,
मैं रेगिस्तान में भी खिला दूं फूल !!
Mere sharir se aati hai watan kee mittee kee khushbu,
Dushman ko chaatata hoon dhool !!
Aasamaan ko bhee bhar loon muththee mein,
Main registaan mein bhee khila doon phool !!
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