मजबूरियों से लड़कर रिश्तों को समेटा है
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मजबूरियों से लड़कर रिश्तों को समेटा है,
कौन कहता है मुझे रिश्तें निभाने नहीं आते।
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मजबूरियों से लड़कर रिश्तों को समेटा है,
कौन कहता है मुझे रिश्तें निभाने नहीं आते।
Majabooriyon se ladakar rishton ko sameta hai,
Kaun kahata hai mujhe rishten nibhaane nahin aate.
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